HOMI J. BHABHA

Homi Jehangir Bhabha, born on October 30, 1909, was an influential Indian nuclear physicist and the founding director of the Tata Institute of Fundamental Research (TIFR). Here's a brief overview of his life and contributions:

1. **Education:**
   - Bhabha studied at Cambridge University in England, where he earned his doctorate in theoretical physics in 1935.

2. **Research and Scientific Contributions:**
   - Bhabha made significant contributions to quantum theory, cosmic radiation, and the emerging field of nuclear physics.
   - In 1937, he published a seminal paper on the behavior of positrons in the field of cosmic rays, now known as the "Bhabha scattering."

3. **Role in Nation Building:**
   - Bhabha played a crucial role in the development of India's nuclear program. He envisioned the use of nuclear energy for peaceful purposes, such as power generation and scientific research.

4. **Founding TIFR:**
   - In 1945, Bhabha founded the Tata Institute of Fundamental Research (TIFR) in Bombay (now Mumbai), which became a leading institution for scientific research and education in India.

5. **Atomic Energy Establishment:**
   - Bhabha was instrumental in establishing the Atomic Energy Establishment, Trombay (later named Bhabha Atomic Research Centre or BARC) in 1954, which became the center for nuclear research and development in India.

6. **Nuclear Policy Advocate:**
   - Bhabha was a key figure in shaping India's nuclear policy and advocated for the peaceful use of nuclear energy.
   - He played a central role in formulating the "Three Stage Nuclear Power Programme" for India.

7. **Awards and Recognition:**
   - Bhabha received several honors, including the Padma Bhushan, and he was elected as a Fellow of the Royal Society in 1941.

8. **Tragic Death:**
   - Homi Bhabha died in a plane crash on January 24, 1966, under mysterious circumstances in the Alps while traveling to Vienna.

Homi J. Bhabha's contributions to science and his vision for the development of nuclear science in India have had a lasting impact on the country's scientific landscape.

HINDI VIEWERS

होमी जहांगीर भाभा, जिनका जन्म 30 अक्टूबर, 1909 को हुआ था, एक प्रभावशाली भारतीय परमाणु भौतिक विज्ञानी और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के संस्थापक निदेशक थे। यहां उनके जीवन और योगदान का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

 1. **शिक्षा:**
    - भाभा ने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया, जहां उन्होंने 1935 में सैद्धांतिक भौतिकी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

 2. **अनुसंधान और वैज्ञानिक योगदान:**
    - भाभा ने क्वांटम सिद्धांत, ब्रह्मांडीय विकिरण और परमाणु भौतिकी के उभरते क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
    - 1937 में, उन्होंने कॉस्मिक किरणों के क्षेत्र में पॉज़िट्रॉन के व्यवहार पर एक मौलिक पेपर प्रकाशित किया, जिसे अब "भाभा स्कैटरिंग" के रूप में जाना जाता है।

 3. **राष्ट्र निर्माण में भूमिका:**
    - भाभा ने भारत के परमाणु कार्यक्रम के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बिजली उत्पादन और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के उपयोग की कल्पना की।

 4. **टीआईएफआर के संस्थापक:**
    - 1945 में, भाभा ने बॉम्बे (अब मुंबई) में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की, जो भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान और शिक्षा के लिए एक अग्रणी संस्थान बन गया।

 5. **परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान:**
    - भाभा ने 1954 में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (जिसे बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र या BARC नाम दिया गया) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो भारत में परमाणु अनुसंधान और विकास का केंद्र बन गया।

 6. **परमाणु नीति अधिवक्ता:**
    - भाभा भारत की परमाणु नीति को आकार देने में एक प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की वकालत की।
    - उन्होंने भारत के लिए "तीन चरण परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम" तैयार करने में केंद्रीय भूमिका निभाई।

 7. **पुरस्कार और मान्यता:**
    - भाभा को पद्म भूषण सहित कई सम्मान प्राप्त हुए और उन्हें 1941 में रॉयल सोसाइटी के फेलो के रूप में चुना गया।

 8. **दुखद मौत:**
    - होमी भाभा की 24 जनवरी, 1966 को वियना की यात्रा के दौरान आल्प्स में रहस्यमय परिस्थितियों में एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई।

 विज्ञान में होमी जे. भाभा के योगदान और भारत में परमाणु विज्ञान के विकास के लिए उनके दृष्टिकोण का देश के वैज्ञानिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव पड़ा है।

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